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श्रम से कमाए शब्द / सविता सिंह

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हमारे शब्द

श्रम से कमाए गए

यूँ न किए जाएंगे खर्च

क्रूरता और चालाकी के खेल ज़ारी रखने के लिए


शब्द हमारे मौन के साक्षी

यूँ न होंगे उपयुक्त

कि करें वे नष्ट दूसरों के एकान्त और निजता


वे लाए जाएंगे कविता में उन्हीं रास्तों

क्षत-विक्षत होना पड़े चाहे उन्हें जितना

जिधर चला रहे हैं ताकतवर नए-नए युद्ध