भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दुनिया को बोलती-बतियाती / अरुणा राय
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:43, 5 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अरुणा राय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पन्ना बनाया)
दुनिया को
बोलती-बतियाती,
घूमती-फिरती,
हंसती-ठहहाती,
बूझती-समझती,
चलती-उडती,
सजती-सवरती,
गुनती-बुनती,
नकारती-फुफकारती
औरतें चुभती हैं!