Last modified on 6 अगस्त 2014, at 20:47

माटी मा / रमेशकुमार सिंह चौहान

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:47, 6 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेशकुमार सिंह चौहान |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

लईकापन म खूब खेलेंव अऊ सनायंेव माटी मा।
पुतरा पुतरी अऊ घरघुंदिया बनायंेव धुर्रा माटी मा।।

डंडा पंचरंगा अऊ भवरा बाटी खेलयेंव माटी मा
घोर घोर रानी अऊ छपक छपक खेलयेंव माटी मा।

जवानी म जांगर टोर कमायेंव मिल के माटी मा।
मुंधरहा ले संझा तक नांगर जोतेयेंव माटी मा।।

ईटा भिथिया अऊ खपरा बनायंव माटी मा।।
सुघ्घर सुघ्घर घर कुरीया संवारेंव माटी मा।

संगी जहुरिया अऊ सगा नाता बनायेंव माटी मा।
दुनियादारी निभऐंव, गुलछर्रा उडायंव माटी मा।।

आगे बुढापा कांपत हाथ गोड माढ़त नईये माटी मा।
खंासी खखांर ला लुकावत हंव अब मैं माटी मा।।

बुढ़ापा के मोर संगी नाती मन खेलत हे माटी मा।
कोनो सगा संगी नईये आंखी गडांयेंव हंव माटी मा।।

फूलत हे सास जीये के नइये आस समाना हे माटी मा।
उतार दव खटिया सोवा दव मोला अब माटी मा।।