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चिनगी / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’
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बाँसक खुट्टा पर जकर बड़ेरी टेकल छै,
ताही फूसक घर पर ई चिनगी फेकल छै।
धधकैत कते लगतै देरी देखत दुनियाँ
जे ओलतिक धधरा बढ़ि मथनी धरि ठेकल छै।
चैतक पछबा केर धुक्कड़ तकरा हौकै छै,
ई हाल देखि कय प्राण ककर नहि चौंकै छै,
सुरसुरी उठल छै ओहिना प्राण अवग्रहमे
तइ पर मेरिचाइक दओंक झोंकिकय छौंकै छै।
अनके धर जारि पजारि सभक ई स्वार्थक रोटी सेकल छै।
देलकै के देशक सब इनारमे भाङ घोरि?
नैतिकताकेर हत्या कय सत्यक टाङ तोड़ि,
देलकै समाजकेँ भुस्सा थड़ि बैसाय हाय!
अपनो समाङकेँ रहलै अपन समाङ छोड़ि,
दुर्बुद्धिक द्वार फुजल सबतरि सद्बुद्धिक बाटे छेकल छै।