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बीतत विकट विभावरी / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

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महिंसिक पीठक ठेला जकर नितम्ब पर
सेहो वंशी टेरय आइ कदम्ब तर।
भाँटि करैए स्पर्धा चम्पा फूस सँ
बाँसक चचरी सेहो पक्का पूलसँ।
जखन बिलाड़िक भाग्येँ टूटल सीक छै,
मुसरी सबकेँ चिन्ता तखन कथीक छै?
चारूदिस कौआक जखन अनघोल हो,
ताहि बीच कोइलीक कहू की मोल हो।
आइ फेर बनवास भेल छनि रामकेँ,
रावण भूजि रहल तेँ गामक गामकेँ।
कृष्ण मानि कय बहुतो पूजय कंसकेँ,
उचिते लागल छैक छगुन्ता हंसकेँ।
कुड़हरि उछटि रहल अछि बाँसक ओधि पर।
लोकतन्त्रमे एहन होइत छै,
रसगुल्लोसँ नीक बताश होइत छै।
विकसत शतदल बीतत विकट विभावरी,
हम बुड़िबक जनता ता चीखी राबड़ी।