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नेता वचनामृत / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

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लड़े-लड़े कहि मतदाताकेँ आङुर पकड़ा बुलवऽदे,
जकरा जे होइछौ से होइछौ, हमरा कुर्थी उलबऽ दे।
जनतन्त्रक महिमा बड़भारी दुनियाँ भरिमे घोल छै,
भने भरल हो भुस्सा गोबर तैयो मुण्डक मोल छै।
राजनीति थिक सौंस सुपारी तेँ तँ सक्कत होइते छै,
तैयो ला हमरा कल्लातर गमे गमे गुलगुलबऽ दे॥
राज चलायब ठट्टा नहि छै, तिकड़म भिड़बऽ पड़िते छै,
जते विरोधी होइ छै से जी-जान लागकऽ लड़िते छै।
मुदा असल गुरकिल्ली सबकेँ नीक जकाँ नहि बूझल छै,
तेँ स्वतन्त्रता देवीकेँ ता हमरे मचकी झुलबऽ दे॥
गाम छलौ बड़ सुन्दर, गौआँ प्रेम भावसँ रहै छलेँ।
सुख-दुख जखन जेना अयलौ सब मिलि-जुलि कऽ सहै छलेँ।
के जानय जे आगि लगा, के लंका बना नुकायल छौ,
पानिक कर ओरियान, मुदा ता हमरा रोटी फुलबऽ दे॥
बुझलहुँ जे बड़ मेहनति कयलेँ, खर्चो पूरा लागल छौ,
खेती तँ छउहे बड़ शनगर, संग कपारो जागल छौ।
ई सामाजिक न्याय थिकै जे सबकेँ भाग बराबरि हो,
समगर्दा सम्पत्ति सभक, तेँ हमरा पाड़ा हुलबऽ दे॥
स्वतन्त्रतामे जनकल्याणे तँ सरकारक काज थिकै,
नेता होइ छै एक, असलमे सकल समाजक राज थिकै।
क्यौ अधीर जुनि हो, धैरज धर, एखन एकर फल काँचे छै,
एमहर ला हमरा मुट्ठीमे, ताबत एकरा घुलबऽ दे॥
जकराजे होइ से होइ छौ, हमरा कुर्थी उलबऽ दे॥