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वर्तमान के आँसू / रमेश रंजक

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पोर-पोर में दर्द निमोही
एक गीत में बाँधूँ कैसे ?

अपराधी बचपन की सज़ा मिली यौवन को
दया न आई तेरे न्यायाधीश नयन को
बोलो ! वर्तमान के आँसू
अब अतीत में बाँधूँ कैसे ?

अब तो लगता है हर दिन दर्द का जन्म-दिन
हँसी फूल की चुभती है जिस तरह आलपिन
घायल अन्तर का सूनापन
हार-जीत में बाँधूँ कैसे ?