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भूरे की हरी छाया / उंगारेत्ती
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साँप की छोड़ी गई केंचुल
से ले कर कातर मस्से तक
भूरे की हर छाया
रेंगती है गिरजाघरों पर...
एक स्वर्णिम पोत की तरह
सूर्य
विदा लेता है
एक-एक तारे से
और गुस्सा होता है मंडुवे तले...
रात फिर उतर आती है
थके माथे की तरह
एक हथेली की खोखल में ।