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हिमालय / केदारनाथ मिश्र ‘प्रभात’
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अरे हिमालय! आज गरज तू
बनकर विद्रोही विकराल!
लाल लहू के ललित तिलक से
शोभित करके अपना भाल।
विश्व-विशाल-वीर दिग्विजयी!
अभिमानी अखंड गिरिराज!
साज, साज हां आज गरजकर
क्रांति-महोत्सव के शुभ-साज
शंखनाद कर, सिंह-नाद कर
कर हुंकार-नाद भयमान!
पड़े कब्र के भीतर मुर्दे
दौड़ पड़ें सुनकर आह्वान।