भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चलो, हल्दी मलें / रमेश रंजक

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:22, 12 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश रंजक |अनुवादक= |संग्रह=किरण क...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धूप उल्टे पाँव चल दी है
              चलो जल्दी चलें

भर लिया होगा किशोरी
खिड़कियों ने आँख में
                 अंजन
सो गया होगा मचल कर
कुलमुला कर दुधमुँहा
                 आँगन

साँझ ने साड़ी बदल दी है
              चलो हल्दी मलें
              चलो जल्दी चलें
धूप उल्टे पाँव चल दी है