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नीति सम्मिलित दोहे 1 / मुंशी रहमान खान

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धन सुकृत का है वही ईश्‍वन हित लग जाय।
भक्ति मुक्ति देवै दोऊ दीन दुखी जो खाय।। 1

जो अनीति से धन हरै नहिं आवै तेहि काम।
महापाप सिर पर धरै मुए नरक महं धाम।। 4

कर सहाय दुखी दीन की ईश्‍वर तोर सहाय।
दैहै जग में विभव तोहिं अंत स्‍वर्ग लै जाय।। 3

नहिं घमंड कर काहु से सब से राखहु प्रीति।
सत्‍य वचन आधीनता यहि सज्‍जन की रीति।। 4

काम क्रोध मद लोभ अरु जिनके हिय संताप।
तिन से प्रेम न कीजियो जनियो करिया साँप।। 5

जो घमंड करै आप को आपको आपहिं खाय।
आप नशावै आपको आप बैठ पछिताव।। 6

नहिं कर रगड़ा काहु से नहिं घमंड जिय राख।
रगड़ा से लोहू गिरै मान नशावै लाख।। 7

नाशे रगड़ा मान से हिनाकुश लंकेश।
दुर्योधन अरु कंस अस मिट गए हिटल देश।। 8

लेन देन व्‍यवहार में नहिं करियो छल चोरि।
तो रहिहौ प्रिय जगत महं विपति न परै बहोरि।। 9

करै भलाई आपनी दूसरे को दुख देइ।
दुख देकें सुख चहत है कहो ईश किमि देई।। 10

सुख दीन्‍हें सुख मिलत है दुख दीन्‍हें दुख लेहु।
कीन्ह न्‍याय जगदीश यह यहि कर देव वहि लेहु।। 11

करहुँ भलाई सबहिं संग देकर धन अरु धान।
पैहौ सुख दुहुँ लोक महं हैं साक्षी रहमान।। 12