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टुकड़ो में जीवन / मनीषा जैन
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पारे जैसे इस समय में
जीना है टुकड़ों में
मरना है टुकड़ों में
जीवन का मोल चुकाते हैं
टुकड़ों में
प्रेम भी हो गया है
टुकड़ों में
पर अब
टुकड़ों को जोड़कर
बनानी है एक
जीवन की मुक़मल तस्वीर
बच्चा बनाता हो जैसे
कोई एक पज़ल।