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शपथ गीत-2 / रमेश रंजक
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हर कमज़ोर इरादे की
मानी हुई दवा हैं हम
रोक सकेंगी क्या चट्टानें अल्हड़ मस्त हवा हैं हम ।
हम सपनों की नई बेल को,
उँगली पकड़ चढ़ाएँगे
सतरंगी फूलों को अपने
कन्धों पर बिठलाएँगे
देंगे छाँह उसी घर को जिस आँगन के बिरवा हैं हम ।
रोक सकेंगी क्या चट्टानें अल्हड़ मस्त हवा हैं हम ।।
हम सागर की लहरों
पर्वत के झरनों-से उजले हैं
छोटे हैं तो क्या लेकिन
हम साहस के पुतले हैं
अपनी हर लँगड़ी मजबूरी को देंगे गलवाहें हम ।
रोक सकेंगी क्या चट्टानें अल्हड़ मस्त हवा हैं हम ।