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किसके नयनों में मेरे / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

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किसके नयनों में मेरे
सपनों का मधु संसार
मेरे प्राणों में किसके
प्राणों का मृदु झंकार
वह कौन? पास मैं जिसके
पर मुझसे दूर सदा वह
बन्धन में मैं हूँ, लेकिन
मुझसे मजबूर सदा वह
बिजली सी आभा किसकी
मेरे मानस में चमकी
युग की सोयी अभिलाषा
जूही सी खिलकर गमकी
मैंने किसको देखा है
भावना जगत में फिरते
मैंने किसको देखा है
कल्पना-गगन में घिरते
पहचान रहा हूँ लेकिन
पहचान नहीं पाता हूँ
किसकी व्यापकता में जा
बन व्याप्य छिपा जाता हूँ
चिर परिचित, किन्तु अपरिचित
अब मन की उलझन खोलो
ओ रोम रोम के वासी!
मेरी भाषा में बोलो