भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सपूतों का सपना / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:51, 20 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’ |अनुवादक= |...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम गाँवों की झोपड़ियों को
महल बनायेंगे सोने का
हम धरती की मिट्टी से ही
कमल खिलायें सोने का
ईश्वर के वरदान के रूप में
मिली निराली धरती सारी
जिस धरती के अन्तस्तल में
निधियाँ बिखरी न्यारी-न्यारी
कहने वाले कह देते हैं
करना उनका काम नहीं है
सच पूछो तो श्रमशीलों का
नाम यहाँ बदनाम नहीं है
अपनी मेहनत से प्राणी को
हम नव जीवन दान करेंगे
आज मिला अवसर फिरसे हम
सुधा गरल सब पान करेंगे
सँभलो, अपना कदम सँभालो
आज दूसरा मौका आया
बूढ़े भारत की हड्डी में
आज नया उल्लास समाया
सींच सींचकर गरम पसीना
इस मिट्टी को तरल बनाओ
कड़ी धूप में तपों और जगती
पर शान्ति सुधा बरसाओ
आज देश स्वाधीन हो गया
इसका नव निर्माण चाहिये
दुख दारिद्रय, विवशता से
जग की जनता को त्राण चाहिये
पंचतत्त्व निर्मित हम मानव
पंचशील सिद्धान्त हमारा
पंचो के हाथों में हमने
सौंप दिया है शाशन सारा
आज प्रकृति के साथ निरन्तर
चलता है संघर्ष हमारा
मुट्ठी में तूफान लिये
हँसता है भारत वर्ष हमारा
ज्ञान और विज्ञान समन्वित
हो जाएँ, यह नया मोड़ है
याद रहे युग और मनुज के
बीच विश्व में आज होड़ है
आज सपूतों के सपनों को
अवसर दो पूरा होने का
गाँवों की हर झोपड़ियों को
भवन बना दो फिर सोने का