भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नंद-नँदन श्रीकृष्ण एक ही हैं / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:25, 21 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

  (राग भैरवी-ताल कहरवा)

 नंद-नँदन श्रीकृष्ण एक ही हैं सब रूपों के आधार।
 वे ही सकल रसोंके, वे ही सकल सुखोंके भी आधार॥
 चिन्तन उनका सुखमय, सुखमय हैं उनके मंगल-दर्शन।
 अन्ग-स्पर्श परम सुखमय है, उनका सब कुछ ही कर्षन॥
 आत्मरूपमें तन-मनमें नित मिले हु‌ए हैं वे प्रियतम।
 वे ही नित अनुभवमें आते, छटा दिखाते शुचि अनुपम॥
 भरे रहें रस-रूप-सौख्यमय प्रिय वे मम बाह्यस्नयंतर।
 उनकी रतिमें हँसता-रोता, रहे नाचता नित अन्तर॥