भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
करें कभी कोई मेरा अति / हनुमानप्रसाद पोद्दार
Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:02, 21 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(राग भैरव-ताल कहरवा)
करें कभी कोई मेरा अति मान-समादर-स्तुति-सत्कार।
अथवा परुष वचन कह, दारुण पदत्राणोंसे करे प्रहार॥
दोनोंमें ही देखूँ मैं, प्रिय श्याम! तुहारा सुन्दर रूप।
हँसकर स्वागत करूँ हृदयसे, प्राप्त करूँ सुख परम अनूप॥
कभी न भूलूँ, भरे तुम्हीं हो प्यारे! सबमें सदा विचित्र।
लीलामय दिखलाते लीला, बनकर घोर शत्रु, शुचि मित्र॥
जो कुछ है, सब तुम हो केवल, होता जो, सब लीला-लास्य।
घोर भयानक, परम मधुर तुम करते लीला-क्रंदन-हास्य॥
देख तुम्हें मैं सदा सर्वगत, सत्-चित्-आँनदमय, स्वच्छन्द।
करूँ सदा अभिनन्दन सबका, अति विनम्र मन भर आनन्द॥