भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जड-चेतन-सबमें देखूँ नित / हनुमानप्रसाद पोद्दार
Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:15, 21 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(राग जंगला-ताल कहरवा)
जड-चेतन-सबमें देखूँ नित बाहर-भीतर श्रीभगवान।
करूँ प्रणाम नित्य नत-मस्तक-मन, तजकर सारा अभिमान॥
करूँ सभीकी यथायोग्य शुचि सेवा, उनमें प्रभु पहचान।
करूँ समर्पण उन्हें उन्हींकी वस्तु विनम्र सहित-समान॥
राग, कामना, ममता सारी प्रभु-चरणोंमें पाकर स्थान।
नित्य कराती रहे मधुरतम प्रेम-सुधा-रसका ही पान॥