लहरों से सीख लिए
सारे ठनगन !
ओरी ! ओ ! नागरी दुल्हन
कलियों की उर्वशी हँसी
तेरे हर अंग में बसी
फैलाती गन्ध की शिकन
दीप-शिखा देह सोनई
अन्धियारा चीरती गई
तेरे अनुभाव की किरण
आँखों में छन्द आँजकर
रसवन्ती देह माँजकर
जा बैठी गीत की सरन
लहरों से सीख लिए
सारे ठनगन !
ओरी ! ओ ! नागरी दुल्हन
कलियों की उर्वशी हँसी
तेरे हर अंग में बसी
फैलाती गन्ध की शिकन
दीप-शिखा देह सोनई
अन्धियारा चीरती गई
तेरे अनुभाव की किरण
आँखों में छन्द आँजकर
रसवन्ती देह माँजकर
जा बैठी गीत की सरन