(राग खमाच)
रे मन हरि-सुमिरन करि लीजै॥-टेक॥
हरि को नाम प्रेम सों जपिये, हरि-रस रसना पीजै।
हरिगुन गाइय, सुनिय निरंतर, हरि-चरननि चित दीजै॥
हरि-भगतन की सरन ग्रहन करि, हरिसँग प्रीति करीजै।
हरि-सम हरि-जन समुझि मनहिं मन तिन कौ सेवन कीजै॥
हरि केहि विधि सौं हम सों रीझैं, सो ही प्रश्र करीजै।
हरि-जन हरि-मारग पहिचानै, अनुमति देहिं सो कीजै॥
हरि-हित खाइय, पहिरिय हरि-हित, हरि-हित करम करीजै।
हरि-हित हरि-सम सब जग सेइय, हरि-हित मरिये-जीजै॥