भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पीठ कोरे पिता-25 / पीयूष दईया
Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:35, 28 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पीयूष दईया |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पन्ना बनाया)
अश्रृव्य शब्द के
श्री विग्रह की अभ्यर्थना में
प्रस्तुत
धागा है
मणि के इन्तज़ार में
(अ) नेक
पिरो लिया जाय मिलते ही
माला में
कल्याण के लिए
पिता
जपता रहूंगा
कौन जाने कब फेरा लग जाय