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हम टिकने के लिए / महेश उपाध्याय
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एक तेज़ धारा में आदमक़द
हम टिकने के लिए
खड़े हैं कतारों में जैसे हों एक अदद
हम बिकने के लिए
जीवन में तिनका होना
कौन चाहेगा
बस इनका-उनका होना
धब्बों को धब्बों से धोते हैं
चमकदार —
हम दिखने के लिए
खिड़की से
दुपहर की धूप को निहार
हो गए पसीने से तार-तार
अनभोगे को भोगे रूप में
जनमे हैं
हम लिखने के लिए