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आदमी का फूल / महेश उपाध्याय
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रंग भर-भर कर रह गया है
आदमी का फूल
एक परचा थामने सम्बन्ध का
कोष खाली कर रहा है गन्ध का
रोज़ होता जा रहा है शूल
भीतर आदमी का फूल
काट कर सम्बन्ध आदमज़ात से
बाँध अपने पाँव अपने हाथ से
वस्तुओं को दे रहा है तूल
आदमी का फूल