भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उनींदी में कविता / अरुणाभ सौरभ

Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:15, 29 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अरुणाभ सौरभ |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आधी रात
रेलगाड़ी की आवाज़ में
तीन-दिन
तीन-रात
कसक सन्नाटा और
अधनींदी को दबाकर
सीने के किसी कोने में
सपनों को चस्पा-चस्पा
रेज़ा-रेज़ा वक़्त के साथ
पहर बीतने का इंतज़ार
अधजगी रात में
उनींदी डूबी आँखें
थकान को भूलकर
कविता पैदा करती है.