भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रंगों का अभिज्ञान / आशुतोष दुबे
Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:38, 1 सितम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आशुतोष दुबे |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पन्ना बनाया)
रंगों के संगीत पर सिर हिलाते हुए
आपने उन्हें सहसा मौन होते हुए देखा है?
वे कभी-कभी सहम कर चुप भी हो जाते हैं
और सफेद पड़ जाते हैं डर से
या स्याह हो जाते हैं
आप जब उनका उत्सव मना रहे होते हैं
वे सुबक रहे होते हैं धीरे-धीरे
काँप रहे होते हैं आशंकाओं मे
वे अपने विसर्जन को जान रहे होते हैं