भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धीरे-धीरे बीती साँझ / दूधनाथ सिंह

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:55, 1 सितम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दूधनाथ सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धीरे-धीरे बीती साँझ
धीरे-धीरे डूबा क्षितिज अन्धेरे की लय में
विलय हुआ मैं बैठा वन के बीच
छवि मेरी गुम हुई पत्थरों के
ऊबड़खाबड़पन में, बैठा पत्थर एक
प्रतीक्षा घायल । लहू चन्द्रमा
उठा अचानक बादल का दिल फाड़
हमारे हृदय-देश में हुआ उजाला
गाढ़ा-गाढ़ा मद्धिम-मद्धिम रक्तिम

स्मृति लौटी फिर किसकी
ठगा हुआ मैं
हुआ तिरोहित
पछतावे के अन्धे
तम में ।