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एक दिन में करोड़ों बरस / लीलाधर जगूड़ी

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करोड़ों बरस भाप हो गये पानी के
करोड़ों बरस पेड़ों के लकड़ी हो गये
कोयले के करोड़ों बरस हो गये आग
आग के करोड़ों बरस राख हो गये

ऊसर बढ़ता है करोड़ों बरस के जलमग्‍न संसार में
हवा हो गये हवा के करोड़ों बरस
समुद्र के करोड़ों बरस छितराये हुए बादल हो गये
धरती की नब्‍ज में धड़कते हैं बज्रपात के करोड़ों बरस

आकाश के करोड़ों बरस बारिश हो गये
करोड़ों बरसों की सघन बरसात छीज गयी इस धरती में

इस धरती पर पुराने सूरज से मिलती है रोज एक नयी सुबह
पुराने अँधेरे में ताजा होती है रात हर रात
धूसर संसार में लौट आता है एक हरा झुट-पुटा

एक-‍एक दिन एक-एक बूँद का समय लेकर
पानी पत्‍थर होता जाता है पानी पेड़ होता आता है
एक-एक रात रंग लेकर समय लोहा होता जाता है
एक-एक दिन से लोहा लेकर समय ताँबा होता जाता है
बीस वर्ष का लोहा पचास वर्ष का लोहा
हजार वर्ष के लोहे से टकराता है
पचास वर्ष का ताँबा हजार वर्ष के ताँबे से टकराता है
अचानक सोना हो जाता है लाखों-लाख बरस का समय
पचास बरस का सोना समय
हजार बरस के सोना समय के साथ कसा जाता है
हजार बरस पुराना राँगा काम आता है टाँके के
चीजों में पड़कर कोई समय खोटा कोई खरा हो जाता है

कहीं इस धरती के करोड़ों बरस
एक वक्‍त का खाना नहीं जुटा पाते
कहीं करोड़ों बरस एक प्‍याली चाय में बदल जाते हैं
कहीं इस धरती के करोड़ों बरस जमा हो जाते हैं
रिजर्ब बैंक में

करोड़ों-करोड़ों बरस पहनकर चले आते हैं
एक जोड़ी कपड़ा
करोड़ों करोड़ नंगे पाँव वाले करोड़ों बरस
पहनकर चले आते हैं एक जोड़ी जूता

करोड़ों बरसों का खून सेकिंडों में
बह जाता है इस धरती पर
सपने के करोड़ों बरस खून हो जाते हैं
खून के करोड़ों बरस तोड़ देते हैं सपना।