भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

देह करी लाचार / रमेश रंजक

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:15, 9 सितम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश रंजक |अनुवादक= |संग्रह=इतिहा...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कोई ना करेगा एतबार
जुलम इतने करि डारे ।

सूरज पै चादर ढक दीनी
अँधियारे में मन की कीनी

देह करी लाचार
जुलम इतने करि डारे ।

जन के प्रान, थकन के मारे,
भय से काँप रहे बेचारे

जैसे पात-बयार
जुलम इतने करि डारे ।