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एक बेरि पुनि जगाउ / शिव कुमार झा 'टिल्लू'

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कतय गेलहुँ ईसर लम्बोदर
बूच -राधा- भोला साव !
केँ संग कयने पुनि अाउ !
उदयन भूमि पर
मिथिलाक दीप जड़ाऊ
चीनीक लड्डू आ बसात
एक बेर आर देखाउ
सुखायल डाढि नव पल्लवक
फेर प्रस्तुति करबाऊ
उजड़ल -उपटल गीत-प्रीतिक
घर -आँगन बसाऊ
मिथिला -मैथिली क प्रति
सबल चिंतन ...
सम्बल दृष्टिकोण
एक बेरि पुनि जगाउ
करू गेह सँ मंथन ...
उदयन नाट्य कला परिषद सँ
एहि साल माँ आद्याक पूजा मे
मैथिली नाटकक मंचन ....
बेपर्द भेल भँसैत संस्कृति केँ
नहि होमय दियौ नांगट
फेर दियौ चारि गोट पर्दा !!!
जगाउ सूतल उदयन सुत सभ केँ
सभ पड़ल छथि
जेना मुर्दा !!!!
कामदेव बाबा बाट ताकि रहल छथि ..
लक्ष्मी जी कनैत ..
जोगी झा बिहुँसैत
रामसेवक मरसयब कॅपैत
लक्ष्मियाक थियेटर देखि
आन गामक लोक हँसैत
उदयनक माटि पर
गणिकाक नाच
की झूठ की साँच
ई अलग गप्प जे
ओहि गणिकाक आँचर सँ
माटि ल' मायक मूरति बनैछ
ई प्रश्न संसारक नश्वरताक
क्षोप -अक्षोप बिच पसरल
खाधिकेँ भड़बाक होईछ..
एकर माने ई त' नहि ...
हम ओकरे संग नाची !!!!
समाज बदलि रहल
दर्शक नहि भेंटैछ ..
की भोजन नहि भेंटत त...
ग्रहण करब विष्ठा..
बचाऊ आचार्य भूमिक प्रतिष्ठा
नवका पिरही मे जगाउ
अलख ..सतकामक निष्ठा
भाय गंगेश - गिरिजानन्द
रामचन्द्र -शारदानंद
तकैत छथि आशक बाट ..
अजित- ढुलो भाय
हहरि क' छोड़लनि नाटक
लोक दिअ' लगलनि तान
रौ सभ अगुरबान..
किएक करैत छें टाटक..
आब सभ बुझि जेताह
की छल अपन कला सँसार
प्रवास मे संग देलक
अपने लोकनिक देल संस्कार
चन्द्रदेवक विद्यापति विचार ..
कक्का रामस्वरूपक आचार
विष्णुदेव भाय आ मुन्नाक कक्काक देल
ओ हास्य-व्यंगक भार
रामजीक कहार
छल " अनमोल- माटिक सचार
रमन-सुमन -चंद्रशेखर भायक
ओ मैथिली गीतक बहार ?
हमहूँ सभ वनवासी
कथाकथित प्रवासी
गाम आयब संग देब
मुदा ! अहाँ त' जल्दी आउ..
नहि घुरिआउ..
टेलर त' देखा देलक
अपन माटिक -अमित
ओकर निर्देशनक सार
शिक्षक दिवस पर
मध्य विद्यालय परिसर मे
अचंभित भेल गाम सँ
बाघोपुर धरिक बजार
देखि मैथिली नाटक "अधिकार "
जतेक सुन्नर लिखलक
ततबे नीक भुटका सभ
विलक्षण मंचन कयलक
नेना सभ बचा रहल
स्वसंकल्पित एहि माटिक लाज
कोनो आन ठामक नेना नहि
अपने गामक ..चारू टोलक
अहीँक वंशज
अपन अवरज
मुदा आश्चर्य
एखन धरि सूतल अग्रज ?
नहि सोचू
आब कथीक करैत छी विचार ?
रवि भूषण " रिहर्सल " क' क'
छथि फाँड़ भिरने
दोसर खेपक लेल तैयार
साज सज्जाक संग सभ कलाकार
मात्र एक व्यथा !
ओहि संकोची लम्बूक लेल
जा हौ विधाता!!
की बिगाड़ने छल' ओ चिलका?