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तय करें किस ओर / जगदीश पंकज
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छद्म में जीते
स्वयं को छल रहे हैं
क्यों अन्धेरे की तरफ़
जाकर खड़े
अनजान से
छिप न पाएँगे
कभी भी
दोहरी पहचान से
किस विवशता में
अलग हो चल रहे हैं
तय करें किस ओर
अपना पथ
तथा जाना कहाँ
सब करें अन्याय
पर अब वार
जैसा हो, जहाँ
दृढ इरादे ही
सदा सम्बल रहे हैं