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संकल्प / संतोष कुमार चतुर्वेदी
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कई बार जेब कटी
कई बार जहरखुरानी का शिकार हुआ
कई बार ऐन मौके पर गाड़ी छूट गई
कई बार नींद में डूबा कुछ ऐसा
कि काफी पीछे छूट गया अपना ठिकाना
कई बार जानलेवा दुर्घटनाएँ घटीं
कई बार चोट खाया
हड्डी पसली तक टूटी
कई बार बीच धार में ही पलट गई नाव
कई बार ऐसा लगा
कि अब खतम हो गया सब कुछ अपना
टूट गया जीवन का सब सपना
कई बार दंगाइयों की चपेट में आया
कई बार माखौल उड़ाया गया
जब भी देश छोड़ा अपना बना प्रवासी
जब भी देश छोड़ा अपना छाई अजब उदासी
कई बार रोका गया
कई बार टोका गया
कर्इ्र बार हिलने डुलने तक की की गई मनाही
फिर भी...
बढता ही रहा अपना ये कारवाँ
थमी नहीं कहीं भी अपनी आवाजाही
कई बार लगा
कि खतम हो गए सारे विकल्प
तब भी...
तब भी नहीं टूटा
चलते रहने का अपना संकल्प