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मधु श्रावणी / शिव कुमार झा 'टिल्लू'
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मधुप विना सुन्न उपवन रे, मधुश्रावणी आयल
कंत विनय विवश कतऽ रे हिय ‘आरती’ हेरायल
सुनू शिव छलिया स्वांगी बनि हमरा विरहयलहुँ
संग महादेव नाम देवर केॅ कलंकित कयलहुँ
हम कएल कतेक अनुग्रह रे अहूॅ हमरा वचन देल
मंजुल मिलन कतऽ गेल रे, कतय बात कलित गेल
हऽम अभागलि मैथिली रे, अपनहि देल घात,
नुपूर खनकि दुःख कातर रे, तोड़ल दामिनी गात
विकल मल्हार सुनि शिव, आनन हँसी सँ उमड़ायल
जुनि हहरू सिये, अहँक लखन रघुवर संग आओल