भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुझको संसार सार / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:27, 23 सितम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश रंजक |अनुवादक= |संग्रह=अतल की ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
तुझको संसार-सार
तेरी ही धड़कनें सिखाएँगी
बार-बार ।
साँसों के पास बैठ
साँसों की बात सुन
तेरी सीमाओं में
गूँजेगी एक धुन
धुन के अनखुले अर्थ
गुनता जा लगातार ।
बड़ी कष्टदायी है
अन्तर-आराधना
सहज नहीं भीतर की
भाषा को साधना
सिद्धा है, जड़ता को
कर देगी तार-तार ।