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तुम्हारा आना / रमेश रंजक
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तुम्हारा आना कितना भला
तुम्हारा जाना कितना खला !
चार घण्टों की मेहमानी
जगी होंठों पर जगरानी
देखते ही भर आया गला ।
कोर की गाँठ-गठीली डोर
हुई कमज़ोरी में पुरज़ोर
बहुत दिन नीरसता ने छला ।
तुम्हारा जाना कितना खला
तुम्हारा आना कितना भला !