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आँखों में प्रतिभ किरण / रमेश रंजक
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आँखों में प्रतिभ-किरन आई है
मनस्-तिमिर-तोम की विदाई है ।
अनुपम आतिथ्य बोध
पाकर मन परेशान
सिहरा, फिर ठहर गया
सब कुछ कर अर्थवान
गाढ़ा सौजन्य भाव
व्याप गया नस-नस में
पत्थर में चेतना समाई है
आँखों में प्रतिभ-किरन आई है
मन का मालिन्य गिरा
निर्झर के पाँव तले
घाटी-भर गूँज उठे
सातों स्वर भले-भले
ढलते नक्षत्रों की
छाया में निर्विकार
वर्तुल सम्वेदना नहाई है
आँखों में प्रतिभ-किरन आई है