भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम क्‍या करें / कुमार मुकुल

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:05, 30 सितम्बर 2014 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

परंपरा की लीद संभाले
जो धंसे जा रहे और खुश हैं वो मूर्ख हैं

यह मूर्खता सहन नहीं कर पा रहे जो
पागल हैं वो

मूर्खें और पागलों से अटा जो परिदृश्य है
वह इतिहास है और बुद्धि‍मान
मूर्खें और पागलों की टांगों के मध्य से
भाग रहे हैं भविष्य को

हम क्या करें कि पागल प्रिय हैं हमें
और बुद्धि‍मानों को हम सर नवाते हैं ।
1997