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दबे पॉव इंतज़ार / रश्मि रेखा

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बिना किसी ख़बर के दबे पाँव
मेरी सोच के बीच आ गया इंतजार
मुझे भनक भी नहीं पड़ी और
सामने खड़ा हो गया एक सपना
अब कौन सी कैंची चलाऊँ इनपर
दूर-दूर तक हैं बातों की कतरनें
एक आवाज दे रही है शब्दों को डैने
खास लिखावट में बदल रही है भाषा
नाकाम हो गई हैं तमाम
इनसे निजात पाने की कोशिशें
अभी भी सलामत है मेरे हाथ-पाँव
 सर-आँखों पर है अपनी नजर का चश्मा
अब कौन सी कैंची चलाऊँ इनपर