भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यूज एंड थ्रो / रश्मि रेखा

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:54, 30 सितम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रश्मि रेखा |अनुवादक= |संग्रह=सीढ़...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

क्या मैं नींद में चल रही हूँ
या तैर रही हूँ जैसे तैरती है समुन्द्र में व्हेल
जैसे पथ्थरों पर पानी का झरना मैं क्यों बहना चाहती हूँ
मैं क्यों देखना चाहती हूँ
थिर पानी में अपना चेहरा
यह कैसा शोर है तूफ़ान की तरह उठता
इसमें भीतर से आती कोई आव़ाज क्यों नहीं हैं

यह बुलंदियों पर चढ़ते जाने का शोर
कामयाबी और चमक-दमक का शोर
इसमें क्यों शामिल नहीं है हमारे जज्वात

नदियों पक्षियों और हवाओं का शोर
क्यों सुनाई नहीं पड़ता
क्यों हर तरफ दहशतअंगेज खबरों का शोर हैं

हमें अलग कर दिया गया है फ़ालतू समझ
या हम चुक गए हैं बेतरह
पंक्ति पूरी होने के पहले ही जैसे
चुक जाती है कलम की स्याही
फिर उसे फ़ेकना ही पड़ता है
लिखो-फेंको के दौड़ते-भागते समय में

याद आता हैं वह गुज़रा ज़माना
जब कलम के साथ-साथ
 हम कलम-दान को भी
बड़ी हिफ़ाजत से रखते थे
धोखे से उसका टूट जाना
कर जाता था बेहद उदास
यूज-एंड थ्रो के इस नए समय में
मैं कहाँ हूँ
क्या मैं नींद में
चल रही हूँ
या तैर रही हूँ
जैसे तैरती है
समुन्द्र में व्हेल