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किस्सा गोपीचंद - 2 / करतार सिंह कैत

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तेरे राज-पाट का ना रह्या री रुखाला
रंग महलांकै भिड़ लिया ताला
सासु री तनै कर दिया चाला या के मन म्हं आई
ऐरी री री ऐरी री री तेरे के मन म्हं आई...टेक

के तनै बेटा नहीं सुहाया अपणे हाथां जोग दवाया
ऐ री खाया बेटा आपै जणकै बैठ गई माँ बैरण बणकै
के दुनिया थूकैगी सुणकै तनै क्यूं ला ली स्याही
ऐरी री री...

16 रानी मोस बिठा दी पति के जीते-जी रांड बणा दी
ला दी आग तनै पाणी म्हं न्यूं राजी भी कुनबा घाणी म्हं
अकल नहीं पाई स्याणी म्हं क्यूं गलती खाई
ऐरी री री...

था म्हारे मृगां जैसा लारा आनंद ठाठ खोस लिया
12 कन्या फिरैं कुंवारी तेरी क्यूंकर अक्ल राम नै मारी
दई बिना बाप की बणा बेचारी तनै दया नहीं आई
ऐरी री री...

मेरा गुरु भजन सिंह समझावै बीत गया वो वक्त हाथ ना आवै
करतार सिंह गावण लाग्या, ध्यान गुरु जी मैं लावण लाग्या
हिया पाट कै आवण लाग्या, रोवै गोपी की माई
ऐरी री री...