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किस्सा गोपीचंद - 3 / करतार सिंह कैत

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हाथ जोड़ कै अर्ज करूं सूं, पूत दे दियो मेरा
बिन गोपीचंद घारा के म्हं हो लिया घोर अंधेरा...टेक

मेरी आंख्यौ के म्हां आंसू आगे जब न्हावण लाग्या लाल मेरा
सोरण काया देख पूत की तुरन्त बदलग्या ख्याल मेरा
मौत के चक्कर से बच ज्या जे होज्या लाल अमर तेरा
बिना गोपी चंद...

हिरणी की ज्यूं ढकरावै मेरी बहू महल म्हां सोला
क्यूंकर धीर बंधाऊं गुरु जी जतन बता दे तौला
पड्या मेरे कर्मा का पासा औला दोष नहीं सै तेरा
बिना गोपी चंद...

ईब गोपीचंद बिन दिन काटूंगी बाबा किसके सहारै
आप जाम कै बेटा खा गी दुनिया रुक्के मारै
मनै अपनी माया आप लुटा दी कोए ना बड्या चोर लुटेरा
बिना गोपी चंद...

बिन गोपीचंद घरां जाण की बिल्कुल करदी टाल मनै
मकड़ी की ज्यूं फंसी बीच म्हं आप बुण्या सै जाल मनै
करतार सिंह कह लेख टलै ना घणे ला गये जोर भतेरा
बिना गोपी चंद...