भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जीत / आस्तीक वाजपेयी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:08, 4 नवम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आस्तीक वाजपेयी |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम वही करते रहे जो आपने कहा था
तलवार उठाओ
तलवार उठाई,
सिर काटो
सिर काटे,
करो बलात्कार
बलात्कार किए ।
हमें बताया गया था कि शायद मर सकते हैं ।
नहीं बताया किसी ने कि जी सकते हैं, हार के साथ,
अपमान के साथ,
साथ एक जीत की उम्मीद के
जो हक़ीक़त के दरवाज़े खटखटाकर थक जाएगी ।
कुछ बच्चे होंगे जो कहेंगे कि इसके अलावा
कुछ नहीं था जो हमने किया था ।
कुछ यादें जिनमें जीत या यश नहीं
पसीना सना है जो धुल जाएगा
और ख़ून लिथड़ा है जो कभी नहीं धुलेगा ।
कुछ बूढ़े अकेले जो बच गए
अपनी जवानी का हिसाब माँगकर
कहते हैं -- हम वही करते रहे जो आपने कहा था‘