भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

डोंगिया / पढ़ीस

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:10, 7 नवम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पढ़ीस |संग्रह=चकल्लस / पढ़ीस }} {{KKCatKavi...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

परबत से निकसी नयी नदी,
हयि धार तेज अउ टेढ़ि-मेढ़ि।
कसि ले पतवारू, उठाउ बाँसु,
मल्लाह, न तनिकिउ चिंता करू-
अपने राम के सहारे पर
यह चली जायि डगमग डोंगिया।
उठि कयि तउ देखु स्यकार<ref>सकार -चरितार्थ, सुबह</ref> भवा।
सबिता<ref>सूर्य</ref> की लयि कयि भयाँट दउरू।
यह बाल-अरून की सोभा लखु,
किरनिन का चूमि अमर ह्वयि जा।
हाँ-हाँ, राम के सहारे पर
यह चली जायि डगमग डोंगिया।
यह फसिलि गुलाबी जाड़े की,
घर-भीतर तक बसंतु फूला;
बिन खिली कलिन की अरघानइँ<ref>सबेरे का धुँआ, कोहरा</ref>
चोरी ते मन च्वरायि भाजइँ।
तुइ नाउ-न्यवारा<ref>एक प्रकार का कृत्रिम नौका बनाकर खेला जाने वाला खेल</ref> खेलु, राम पर
चली जायि डगमग डोंगिया।
दूध की नदी अन्हवायि रही
परभातु समीरन<ref>समीरण, वायु, हवा</ref> पर पउढ़ा।
महतारी की कनिया मा कसि-कसि
कूदि-कूदि अनंदु भरि ले!
यितनयि राम के सहारे पर
यह चली जायि डगमग डोंगिया।
जब ठीक दुपहरी फूलि रही,
तब चमाचम्मु सबु देखि परयि-
हयि अउघटु<ref>औघट</ref> घाटु गहिर पानी
मुलु तुइ तउ कसि कयि फ्याँट बाँधु।
रहि-रहि राम के सहारे पर
यह चली जायि डगमग डोंगिया।
बरसाती बादर घूमि रहे,
बिजुली चमकयि कउँधा<ref>नदी की बाढ़ से जलमग्नता</ref> लपकयि;
बूड़ा<ref>भूचाल, भूडोल</ref> बाढ़इ भुइॅ -चालु चलयि,
चलु देखि-देखि न काँटु लागयि।
तोरे राम के सहारे पर,
यह चली जायि डगमग डोंगिया।
आवस<ref>सुरा-मदिरा, शराब</ref> के प्याला छलकि रहे,
तालन पर कँवला<ref>एक प्रकार का फूल कमल</ref> महकि रहे;
खिलि ले, खुलि ले, छकि ले, थकि ले,
मुलु तुइ जुआन, कुछ समुझि बूझि।
चलु-चलु राम के सहारे पर
यह चली जायि डगमग डोंगिया।
हरियरी किनारी, हरियरि सारी,
नद्दी-नरिया पहिंदे हयि।
बिरछिन<ref>वृक्षों, पेड़ों</ref> की भरी जुआनी ते
सबु हरियर-हरियर चुआ परिय।
रसु ले राम के सहारे पर
यह चली जायि डगमग डोंगिया।
यह कामरूप की नगरी आयी
तुहिंका का तुइ काहे ड्यरू <ref>डर, भय</ref>?
सबमा लिलिकयि सबते अलहिद<ref>अलग, अकेला</ref>
तुइ राम-राम का महारथी।
उयि पार देखु उयि पार देखु;
हाँ, चली जायि डगमग डोंगिया।
नउका उइ बियावान<ref>सुनसान, एकान्त</ref> पहुँची-
जो ऊबड़-खाबड़ गंध-हीन।
भूतन का गड़बड़ देखि-देखि,
तुइ हँसि-हँसि दे छिन-भंगुर पर।
रटु राम-राम, रटु राम-राम,
तब चली जायि डगमग डोंगिया।
दिनकर तुर्रायि<ref>अकड़ना, ऐंठना, क्रोधित होना</ref> पछाँह अहा!
सोभा का सागरू उछरि रहा;
कस साँझ परी पखना फयिलाये
जलथल ऊपर नाचि रहि।
राम का तमउ-गुनु-रूपु देखु,
बसि चली जायि डगमग डोंगिया।
पानी बरफीला, पाला बरसयि
राँति अँध्यरिया बनयि रही,
तुइ तउ मतवाला माला लीन्हे,
आँखिन आँजे रतन जोति,
राम की दोहाई फँूकि- फँूकि-
चलु चली जायि डगमग डोंगिया।
तुइ लिहे कमर किरपान राम की
अकरम गति पर का देखे!
न कहूँ डोंगिया, न कहूँ डबना <ref>छोटे पतवार, चप्पू</ref>
न कहूँ डोंगिया, न कहूँ तुइ हयि,
सबि राम-राम की माया की
यह चली जायि डगमग डोंगिया <ref>छोटी नाव</ref>।

शब्दार्थ
<references/>