भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कयिस-कयिस कनवजिया ह‍उ? / पढ़ीस

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:26, 7 नवम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पढ़ीस |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} {{KKCatAwadhiRachna}} <poem> ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

घर मा, बँभनन माँ, हिन्दुन मा, हिन्दुस्तानिन, संसार बीच
मरजाद का झंडा गाड़ि दिह्यउ, अब कयिस-कयिस कनवजिया हउ।
तुम बड़े पवित्र, पूर पण्डित, नस-नस मा दउरा असिल खून,
तुम खटकुल की खीसयि द्याखउ ? तुम अयिस बड़े कनवजिया हउ।
बहिनी, बिटिया कंगाल जाति की, तुमरे कारन पिसी जायि,
तुम सह्यब बने सभा मा भूल्यउ, कयिस, अयिस कनवजिया हउ।
पढ़ि-पढ़ि पूरे पथरा भे हउ, घर-घर मा जगुआ<ref>जागृति, जागरण, चेतना</ref> छायि रहा।
यी सयिति दिल्ली ते घाखति हयि, अयस बड़े कनवजिया हउ।
ध्वड़हा, उँटहा लदुआ किसान निज करमु करयि तउ तुम डहुँकउ,
अपनी बिरादरी का तूरति हउ, अयिस नीक कनवजिया हउ।
तुम दकियानूसी<ref>प्राचीनतम, पुरातन पंथी</ref> बतन भूल, देस-काल ते पाछे हउ,
तुम का गल्लिन का गिटई हँसती, अयिस खरे कनवजिया हउ।
तुम जस-जस चउका पर झगरय्उ, तस जाति बीच भमोलु भवा,
दादा, अब हे कुछु चेति जाउ, तुम कयिस कनवजिया हउ।

शब्दार्थ
<references/>