भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जमींदारी ठाठु / पढ़ीस

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:32, 7 नवम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पढ़ीस |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} {{KKCatAwadhiRachna}} <poem> ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नाचु बिसमिल्लइ का होय वसारे मा !
चहयि बिसवयि बिसुवा बिकाय,
नाचु बिसमिल्लइ<ref>एक नाम विशेष-‘बिसमिल्ला’</ref> का होय वसारे’358<ref> 358-सहन</ref> मा !
लरिकउनू की पसनी मँ भीर
ठनक मिरदंगी ति होय दुआरे मा !
बाउ पुरिखन की यह भागि
जो जग्गि रचाउव तउ
घुँघरून से उठयि घमसानु
नाचु बिसमिल्लइ का होय वसारे मा !
भला गैलन चारि त होयँ
तपउन चढ़ै खुब-खुब;
बड़े काका कहयिं वहु ठीक
नाचु बिसमिल्लइ का होय वसारे मा !
कहयिं मलकिनि ब्यारउ ब्यार <ref>बार-बार</ref>
गहनवौ गिरौ करबै,
मुलउ डेरा नचाउब चारि
नाचु बिसमिल्लइ का होय वसारे मा !
उयि मंगलु गावयिं असीसु
झँड़ू ले जिययिं जुगुजुगु
बिसमिल्ला क लहरा-पटोरू <ref>लहर पटोरू, तड़क-भड़क वाली पोषाक-विवाह का वस्त्र</ref>
नाचु बिसमिल्लइ का होय वसारे मा !
सब पंचन का ब्यवहारू
बड़ाई हमार करयिं,
ठुकरस्ती की बात न जायि,
नाचु बिसमिल्लइ का होय वसारे मा !

शब्दार्थ
<references/>