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स्याम! तुम मेरे जीवन-प्रान / स्वामी सनातनदेव
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राग मधुवन्ती, तीन ताल 29.8.1974
स्याम! तुम मेरे जीवन-प्रान।
कासों तुलना करों तिहारी, तुम सम कोउ न आन॥
मेरी जीवन-निधि हो तुम ही, तुम मो तनुके प्रान।
तुम बिनु जीवन हूँ नहिं जीवन, यह तनु जन्त्र समान॥1॥
तुम हीसों पायो सब मैंने, देहुँ कहा प्रतिदान।
सब कुछ लेहु, देहु निज निजता, चहों यही वरदान॥2॥
मेरो मोमें है न कहूँ कछु, सब ही तव अवदान।
मैं हूँ एक बूँद मनमोहन! तुम हो सलिल समान॥3॥
स्याम! तिहारो सुख मेरो सुख, निज सुख कोउ न आन।
मेरी मोमें है न कोउ रुचि, सब ही तव रस-दान॥4॥
तुम रस देहु, तुमहि रस पावहु, तुम ही रसिक सुजान।
तुम ही रस, यह सब है रसनिधि! तब रस-केलि समान॥5॥