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मितवा कौन तुझे समझाए ! / कांतिमोहन 'सोज़'

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मितवा कौन तुझे समझाए!
सोवत हो तो हाँक लगाऊँ जागत कौन जगाए रे मितवा ।
कौन तुझे समझाए ।

तू है हठी अरज नहिं माने
निरमोही मोरी पीर न जाने
मन केवल तोको पहचाने
बिसरत नहिं बिसराए रे मितवा !
कौन तुझे समझाए ।

मोहिनि सूरत माहिं बसत है
तोरे दरस बिन कल न परत है
नाग बिरह का मोहे डसत है
भागत नाहिं भगाए रे मितवा
कौन तुझे समझाए ।
सोवत हो तो हाँक लगाऊँ जागत कौन जगाए रे मितवा ।
कौन तुझे समझाए ।।