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मितवा कहाँ गया मोरा चैन ! / कांतिमोहन 'सोज़'

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मितवा कहाँ गया मोरा चैन !

दरद की मारी बन-बन डोलूँ
बन-बन डोलूँ मैं तो बन-बन डोलूँ
भेद जिया का सब पर खोलूँ
पंछी-पेड़ सभी से बोलूँ
कल न परत दिन-रैन रे मितवा
कहाँ गया मोरा चैन ।।

पाँव थके मोरे नैन दुखाने
नैन दुखाने मोरे नैन दुखाने
छाती दरक गई सुन-सुन ताने
बेदरदा मोरा दरद न जाने
दुःख-मेटन सुख-दैन रे मितवा
कहाँ गया मोरा चैन ।।

मितवा कहाँ गया मोरा चैन ।।