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वन्दों जुगल के पद-कमल / स्वामी सनातनदेव

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राग भैरव, ताल रूपक 20.7.1974

वन्दो जुगल के पद-कमल।
नील पीत सरोज सम अति सुभग कोमल विमल॥
जिनहिं पाय स्वभाव चपला होत कमला अचल।
परम धन जो सम्भु के, जो पियहिं गुरुतम गरल॥1॥
जिनहिं परसत होत सुरसरि पतित-पावनि प्रबल।
जिनहिं व्रज-रस परसि तारत जगत के खल सकल॥2॥
नित्य निधि व्रज-वल्लविन के अति अनूपम अचल।
पाय जिनकी पुन्य रज अज लह्यौ रति-रस विमल॥3॥
ग्यान-मान विसारि सेवहिं जिनहिं मुनिजन सकल।
जिनहिं सुमिरत होहिं नारद-सुक-सनक-से विकल॥4॥
बसहिं वे मो मन-भवनमें सदा सन्तत अटल।
तिनहिं सुमिरत रहों नित ही प्रीति-रसमें विकल॥5॥