Last modified on 21 नवम्बर 2014, at 10:56

हवा हो तुम / मनीषा पांडेय

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:56, 21 नवम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनीषा पांडेय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

चीड़ के जंगलों से बहती चली आती
हवा हो तुम
आती
बालों को उड़ाती
दुख से चुभती आंखों पर सुख बनकर बैठ जाती
गालों को दुलार से छूती
बतियाती
पूछती हाल,
कभी न कही गई कहानियां
मन के सबसे अंधेरे कोने
अपने संग बहा ले जाती
सब उदासियों का बोझ
मन इतना हल्‍का
जैसे हवा में उड़ते
रूई के फाहे हों