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कासों कहों हिये की बात 1 / स्वामी सनातनदेव

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राग आसावरी, तीन ताल 2.9.1974

कासों कहों हिये की बात।
मेरी पीर हरै ऐसो कोउ मोहिं न कतहुँ लखात॥
लगी प्रीति की ईति<ref>व्याधि</ref> मोहि अरु बढ़ो विरह की तात<ref>वायु ऊष्मा</ref>।
याकी दवा करै ऐसो कोउ वैद्य न कतहुँ दिखात॥1॥
जाहि मिलै यह व्याधि जाय सो दूर हि दूर दुरात।
सुनत न मेरी बात हठीलो, निकट न नैकहुँ आत॥2॥
कहा करूँ बस, बरूँ विरह में, तन-मन अति अकुलात।
बिनु प्रीतम यह ईति हरै को, बिलखूँ मैं दिन-रात॥3॥
टूटी आस, न पास आत कोउ, सुनत न मेरी बात।
दरस-सुधा जो देहिं कृपा करि मुयो हियो हरियात॥4॥
आओ, प्रान जुड़ाओ प्यारे! बहुत भई यह घात।
असह भयो यह विरह मोहिं अब, कैसे तुमहिं सुहात॥5॥

शब्दार्थ
<references/>